पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer)
पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer) बिजली का एक ऐसा उपकरण है जो बिजली ऊर्जा को एक अल्टरनेटिंग करंट सर्किट से दूसरे अल्टरनेटिंग करंट सर्किट में बिना किसी चालक संपर्क के ट्रांसफर करता है।
इस ट्रांसफर के समय फ्रीक्वेंसी में कोई अंतर नहीं आता पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer) के जिस भाग को बिजली ऊर्जा दी जाती है उसे पावर ट्रांसफार्मर की प्राइमरी साइड तथा जिस भाग को से ऊर्जा प्राप्त की जाती है उस भाग को सेकेंडरी साइड कहा जाता है।
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ऊर्जा के ट्रांसफर के समय सेकेंडरी साइड से प्राप्त होने वाली सप्लाई का मान प्राइमरी साइड से कम या अधिक करना संभव है यदि पावर ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी साइड से वोल्टेज बढ़ाने का कार्य लिया गया है तो इसको स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहते हैं ,अगर इसको वोल्टेज कम लेने के लिए उपयोग किया गया हो तो इसको स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर कहते हैं।
कुछ पावर ट्रांसफार्मर मेंवोल्टेज का अंतर नहीं डालते इन्हें आइसोलेशन ट्रांसफॉर्मर कहते हैं
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पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer) के कार्य करने का सिद्धांत
पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer) म्युचुअल इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है चित्र की तरह जब प्राइमरी वाइंडिंग को Ac सप्लाई दी जाती है तो यह परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है इस चुंबकीय क्षेत्र की बल रेखाएं सेकेंडरी क्वायल को काटती है जिससे इसमें बिजली बाहक बल E.M.F. होता है।
एस E.M.F. मात्रा के वाइंडिंग के लपेटों की संख्या पर निर्भर करती है, इस समय यदि सेकेंडरी वाइंडिंग के साथ लोड लगाकर सर्किट को पूरा कर दिया जाए तो इससे में करंट का बहाव होता है इस प्रकार दो कोयल के बीच परिवर्तनशील चुंबकीय संपर्क होने पर उसमें वोल्टेज ट्रांसफर होते हो जाते हैं।
दोनों क्वायल के बीच कोर का प्रयोग करने करके उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को लीकेज होने से बचाया जा सकता है और इस प्रकार बना पावर ट्रांसफार्मर (Power transformer) अधिक प्रभावी होता है। लो फ्रिकवेंसी पर 95 परसेंट कार्यक्षमता के लिए उच्च स्तर की लेमिनेशन धातु का प्रयोग करके पावर ट्रांसफार्मर को नए युग की आवश्यकता के अनुसार बनाया जा सकता है।
high-frequency ट्रांसफर के लिए पहले से ही CRGO Cold Rolled Grain Oriented Steel लेमिनेशन प्रयोग की जा रही है प्राइमरी वाइंडिंग में परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए आवश्यक है कि उसे केवल AC वोल्टेज ही दिए जाएं DC वोल्टेज कोई भी ट्रांसफर काम नहीं करेगा।
ट्रांसफार्मर में होने वाली विधुत क्षति (losses in Transformer)
इलेक्ट्रिकल पावर के ट्रांसफर की इस काम में कई प्रकार के लॉसेस होते हैं और अंतिम रूप में हुई पावर पावर ट्रांसफार्मर के द्वारा की गई पावर से 10% से 20% तक कम होती है जो प्रयोग की गई कोर पर निर्भर करती है।
लेकिन यह लॉसेस ना केवल कोर के कारण उत्पन्न होते हैं बल्कि इसमें कई दूसरे कारण भी होते हैं ,जहां इन सभी कारणों का उल्लेख किया गया है जो एक साथ मिलकर पहले बताई गई लॉसेस की प्रतिशत उत्पन्न करते हैं।
1. आयरन क्षति ( iron loss )
transformer लेमिनेशन कोर में बहुत अधिक संख्या में छोटे-छोटे चुंबक होते हैं, जो इसकी सतह पर फैले होते हैं। इनके गुणों में परिवर्तन होता रहता है इन छोटे मैग्नेट्स का चुंबकीय कार्य एक दूसरे के द्वारा समाप्त हो जाता है यह बाहरी मैग्नेट फील्ड के द्वारा शक्ति प्राप्त करते हैं और फील्ड का विस्तार करने में इसकी सहायता करते हैं।
इसको परिणाम स्वरूप एक विस्तृत self-inductance प्राप्त होता है जब इसे एसी सप्लाई दी जाती है तो लेमिनेशन से घिरी हुई वाइंडिंग इस करंट की गति का विरोध करती है इसके अलावा वाइंडिंग की रजिस्टेंस के कारण करंट का बहाव धीमा होता है।
इसके विपरीत एक एयर कोर कवाईल में करंट का मान तेजी से 4 गुना बढ़ जाता है।
2.एनडी करंट लॉस (eddy current loss )
transformer लेमिनेशन कोर में एक विद्युत सुचालक होती है और कोर E और I आकार की पत्तियों के समूह के रूप में होती है और वाइंडिंग को एक सिंगल टर्न की तरह कार्य करती है।
संपूर्ण वाइंडिंग इस प्रकार की बहुत सी पत्तियों से घिरी होती है जब वाइंडिंग को एसी AC सप्लाई दी जाती है तो लेमिनेशन में इंडक्शन उत्पन्न होता है क्योंकि लोहा एक सुचालक है तथा इसे चुंबकीय बल रेखाएं काट रही है इसमें विद्युत वाहक बल EMF की उत्पन्न होना स्वभाविक है यह transformer छोटे-छोटे EMF करंट पैदा करते हैं जिन्हें eddy current कहते हैं यह करंट उन कारणों का विरोध करती है जिनके कारण उत्पन्न होती है।
इस एंडी करंट कारण पावर ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ जाता है जिसमें ऊर्जा का लॉस होता है, एंडी करंट को हटाया नहीं जा सकता परंतु इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है इसके लिए ठोस लोहे के स्थान पर सिलिकॉन स्टील की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।
3. saturation loss
जब तक प्राइमरी में करंट का मान समान्य रहता है तब तक मैग्नेटिक फील्ड भी सामान्य अवस्था में रहता है, लेकिन जैसे ही वोल्टेज में परिवर्तन होते हैं परिवर्तन होने के कारण करंट का मान बढ़ता है वैसे ही मैग्नेटिक फील्ड भी इसी अनुपात में बढ़ता है वोल्ट में लगातार वृद्धि होने पर मैग्नेटिक फील्ड एक ऐसी सीमा पर आ जाता है कि अब और अधिक वृद्धि होने पर भी यह नहीं बढ़ता इसे सिचुएशन की स्थिति कहते हैं।
power transformer की सामान्य कार्य अवस्था में इसके चारों तरफ एक कमजोर मैग्नेटिक फील्ड पैदा होता है लेकिन जैसे ही पावर ट्रांसफार्मर ऊपर बताए गएकारण में सिचुरेट होता है वैसे ही इसको चारों तरफ बढ़ने वाले मैग्नेटिक फील्ड का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता है।
जिसमें यह इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों में विधतूय व्यवधान उत्पन्न करता है ऐसी स्थिति में सेकेंडरी वाइंडिंग को वोल्टेज पर भी बुरा असर पड़ता है इस प्रकार से क्यूरेशन भी पावर सप्लाई की कार्य क्षमता में कमी उत्पन्न करता है।
4. कॉपर क्षति (copper loss)
प्रत्येक कॉपर वायर का चाहे वह पतला हो चाहे मोटा हो डीसी रजिस्टेंस होता है जो इलेक्ट्रिकल करंट के बहाव में का विरोध करता है क्योंकि transformer की वाइंडिंग में काफी कॉपर वायर का प्रयोग होता है अतः यह एक पावर ट्रांसफार्मर की कार्य क्षमता में भी कमी लाता है।
5.हिस्टेरिसिस क्षति ( Hysteresis Loss )
हिस्टेरिसिस किसी पदार्थ का वह गुण होता है, जिसके कारण चुंबकीय क्षेत्र को परिवर्तन के लिए ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है दूसरे शब्दों में यह कहा जाता है कि मैग्नेटाइज फ़ोर्स लगाने और हटाने पर मैग्नेटाइजेशन का पीछे रह जाना हिस्टेरिसिस कहलाता है।
हिस्टेरिसिस सिथराक निमन प्रकार होता है
Silicon steel | 0.001 | ||||||
M.S. Sheet | 0.003 | ||||||
Wrought Iron | 0.004 | ||||||
Annealed cast steel | 0.004 | ||||||
soft mild steel | 0.009 | ||||||
High carbon steel | 0.012 | ||||||
cast Iron | 0.016 | ||||||
इस प्रकार स्पष्ट है कि सिलिकॉन स्टील का हिस्ट्रेसिस सिथरोक सबसे कम होता है यही कारण है के एसी सर्किट में इलेक्ट्रोमैग्नेट के लिए सिलिकॉन स्टील का ही सबसे अधिक प्रयोग होता है।
इसमें दूसरे पदार्थों की तुलना में हानि कम होती है लेकिन सिलिकॉन स्टील लेमिनेशन की कुछ निश्चित सीमाएं होती है जैसे यह लेमिनेशन ऑडियो फ्रीक्वेंसी रेंज 10Khz तक ही प्रयोग की जा सकती है।
इस से ऊपर और नीचे फ्रीक्वेंसी पर यह शोर उत्पन्न करती है । अतःउत्पन्न होने वाले हाइ एडी करंट के कारण इन में होने वाले लॉसेज अपेक्षाकृत अधिक होते है ।
transformer यह क्रिया चूंकिR विपरीत पोलैरिटी में होती है अत्य आप चुंबकीय बल रेखाओं का विरोध करती है परिणाम स्वरूप एनर्जी का लॉस होता है।
क्योंकि हिस्ट्रेसिस फ्रीक्वेंसी लॉस के समानुपाती होती है इस कारण हाई फ्रिकवेंसी वोल्टेज पावर ट्रांसफॉर्मर में हाईकोर्ट का प्रयोग किया जाता है।
पावर ट्रांसफार्मर में कोर को जितनी कठोरता के साथ लगाया जाता है उतनी ही अधिक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है और इसी प्रकार प्रति टर्न की संख्या कम हो जाती है और पावर ट्रांसफार्मर की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है ।
इस प्रकार प्रति वोल्ट टर्न की संख्या कोर एरिया पर निर्भर करती है इसके अलावा कोर की टाइटनेस भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है पावर ट्रांसफार्मर की अधिकतम कार्यक्षमता उच्च क्वालिटी की लेमिनेशन जैसे CRGO-CRNGO के साथ प्राप्त की जा सकती है
transformer का उपयोग किसके लिए किया जाता है?
महत्वपूर्ण और आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले ट्रांसफार्मर में से एक बिजली ट्रांसफार्मर है।
यह व्यापक रूप से विद्युत ऊर्जा उत्पादन स्टेशन और वितरण स्टेशन
पर क्रमशः
वोल्टेज को ऊपर और नीचे करने के लिए उपयोग किया जाता है।
transformer कितने प्रकार के होते हैं?
transformer को श्रेणियों के अनुसार तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
वे
बड़े बिजली transformer, मध्यम बिजली transformer और छोटे बिजली transformer हैं।
ये ट्रांसफार्मर वोल्टेज संचारित करते हैं।
इसे पावर transformer क्यों कहा जाता है?
पावर transformer का अर्थ विद्युत शक्ति को संचारित करने के उद्देश्य से एक transformer है जो एक ही आवृत्ति पर वैकल्पिक वोल्टेज और करंट की एक प्रणाली को वैकल्पिक वोल्टेज और करंट की एक अन्य प्रणाली में परिवर्तित करता है।